
विनोद कुमार शुक्ल को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार
- रायपुर। अनगिनत कविताओं, कहानियों और उपन्यासों के रचयिता वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। छत्तीसगढ़ के लोगों को इस पर गर्व हो रहा है क्योंकि वे छत्तीसगढ़ के हैं। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप काम किया और 1971 में प्रकाशित लगभग जयहिंद नामक काव्य संग्रह से लेकर दर्जनों किताबें लिखीं।
- कितना कुछ लिखना बाकी है
पुरस्कार की घोषणा होने के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा- मुझे लिखना बहुत था। बहुत कम लिख पाया। मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत,लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा। कितना कुछ लिखना बाकी है, जब सोचता हूं तो लगता है बहुत बाकी है। इस बचे हुए को मैं लिख लेता अपने बचे होने तक। मैं अपने बचे लेखन को शायद लिख नहीं पाऊंगा। तो मैं क्या करूं? मैं बड़ी दुविधा में रहता हूं। मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपनी जिंदगी से करना चाहता हूं। लेकिन मेरी जिंदगी कम होने के रास्ते पर तेजी से बढ़ती है। और मैं लेखन को उतनी तेजी से बढ़ा नहीं पाता। तो कुछ अफसोस भी होता है। ये पुरस्कार बहुत बड़ा पुरस्कार है। ये एक जिम्मेदारी का अहसास है। मैं इसको महसूस करता हूं। और अच्छा तो लगता है। खुश होता हूं। बड़ी उथल पुथल है। महसूस करना कि ये पुरस्कार कैसा लगा। बहुत बढ़िया लगा।
मीडिया से चर्चा में उन्होंने कहा कि लेखन उनके लिए सहज नहीं है। िलखने के लिए उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकारों को मैंने बहुत ज्यादा नहीं पढ़ा। मुझ पर छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों का नहीं, छत्तीसगढ़ का प्रभाव है। मैं बहुत ज्यादा स्थानीय नहीं हो पाया। दुनिया भर में बहुत से लोग बहुत अच्छा लिख रहे थे। मेरी उसमें रुचि थी।
उन्होंने कहा कि मैं अपने सुख के लिए लिखता हूं। लिखने से मुझे सुख मिलता है। इससे दुनिया को क्या मिलता है, मैं नहीं जानता। मैं यह भी नहीं जानता कि मेरे लिखने से दुनिया में, या मेरे आसपास क्या बदला है। बल्कि मैं तो यह भी नहीं जानता कि मेरे लिखने से मेरे घर में क्या बदला है। उन्होंने हंसते हुए पूछा कि मेरे लिखने से किसी में क्या बदला है, यह मैं कैसे जानूंगा?
उन्होंने कहा कि मैं अपने सुख के लिए लिखता हूं लेकिन समाज और दुनिया के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान भी रखता हूं। क्योंकि मैं भी समाज और दुनिया का हिस्सा हूं।
उन्होंने बस्तर संदर्भ में भी एक कविता लिखी है जिसमें कहा गया है कि आदिवासी लड़कियां जंगल अकेले चली जाती हैं, उन्हें डर नहीं लगता लेकिन बाजार वे साथ मिलकर जाती हैं। तब के बस्तर और अब के बस्तर में क्या बदलाव आया है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि बहुत समय से मैं बस्तर नहीं गया। वहां के बारे में मेरे पास जो जानकारी है वह अखबारों में पढ़ी हुई है। मेरी अपनी कोई जानकारी नहीं है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने यह भी कहा कि हम केवल अपने लिए अच्छे नहीं हो सकते। जब तक हम किसी की सहायता नहीं करेंगे, तब तक हम अच्छे मनुष्य होने की तरफ नहीं बढ़ सकेंगे।
विनोद कुमार शुक्ल, एक परिचय
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के कवि, कथाकार और उपन्यासकार हैं। 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए जाना जाता है। वे कवि होने के साथ कथाकार और उपन्यासकार भी हैं। उनके साहित्य में मध्यमवर्गीय जीवन का बारीक वर्णन मिलता है। पिछले डेढ़ दशक से वे बच्चों और किशोरों के लिए लिख रहे हैं। बच्चों के लिए उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ और कविताएं रची हैं जिनके संग्रह प्रकाशित हैं। उनकी रचनाओं पर नाटक खेले गए, फिल्म भी बनी है। उनकी कृतियों पर बनी फिल्में वेिनस व अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में चर्चित व प्रशंसित हुई हैं।
उन्हें भारत सरकार का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, मध्यप्रदेश शासन का ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, मोदी फाउंडेशन का ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’ प्रदान किया जा चुका है। साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्यता (फैलोशिप)’ से सम्मानित किया है। अंतरराष्ट्रीय साहित्य में श्री शुक्ल के योगदान पर उन्हें वर्ष 2023 के ‘पेन-नोबोकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर’ से सम्मानित किया गया है। उनकी रचनाओं के भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं।
श्री विनोद कुमार शुक्ल की प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ –
कविता संग्रह
‘लगभग जयहिंद वर्ष (1971)
‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह (1981)
‘सब कुछ होना बचा रहेगा। (1992)
अतिरिक्त नहीं (2000)
‘कविता से लंबी कविता (2001)
‘आकाश धरती को खटखटाता है (2006)
‘कमी के बाद अभी (2012)
‘बना बनाया देखा आकाश, बनते कहीं दिखा आकाश (2022)
‘एक पूर्व में बहुत से पूर्व (2024)
‘केवल जड़े हैं (2025)
उपन्यास
‘नौकर की कमीज़ (1979)
‘खिलेगा तो देखेंगे (1996)
‘दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997)
‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (2011)
‘यासि रासा त (2017)
‘एक चुप्पी जगह’ (2018)
कहानी संग्रह
‘पेड़ पर कमरा (1988)
‘महाविद्यालय (1996)
‘एक कहानी (2021)
घोड़ा और अन्य कहानियां (2022)
पेड़ नहीं बैठता (2023)
कहानियां जो शुरू नहीं हुई (2024)
कहानी/कविता पर पुस्तक
गोदाम, (2020)
गमले में जंगल'(2021)
तीसरा दोस्त (2022)
अनुवाद
The Servant’s Shirt (Novel)
‘A Window Lived In The Wall’ (Novel)
“Once It Flowers (Novel)
“Moonrise From The green Grass Roof (Novel)
“Blue Is Like Blue’ (Stories Collection]
‘The Windows In Our House Are Little Doors’ (Novel)
‘A Silent Place’ (Novel)
‘LA CHEMISE DU DOMESTIQUE’ (Novel in French)
‘LA POESIA DI VINOD KUMAR SUKL’ (Poems Collection in Italian)
‘Treasurer Of Piggy Banks’ (Poems Collection in English)
‘The Jungle in a Pot’ (Poem Book in English)
‘Godowan’ (Story Book in English)
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