रायपुर। हाल ही में रायपुर के नुक्कड़ टी कैफे में कवि बसंत दीवान की स्मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें उनके परिजन और पुराने मित्र उपस्थित हुए।
सबने अपनी अपनी रचनाएं सुनाईं और बसंत दीवान से जुड़े अपने संस्मरण भी।
भिलाई से आए बसंत दीवान के मित्र और अनगिनत कवि सम्मेलनों के उनके साथी कवि रवि श्रीवास्तव ने बताया कि बसंत दीवान सबका खयाल रखने वाले इंसान थे। नवीन मार्केट में उनका फोटो स्टूडियो उनके मित्रों की बैठकी का अड्डा था। बाहर से आने वाले कवि भी उनके स्टूडियो में आते थे। गप शप होती थी। कभी कभी तो फोटो खिंचाने आए लोग इंतजार करते रह जाते थे। स्टूडियो के पास एक लॉज था जिसका एक कमरा कवियों के लिए बुक रहता था। बस बताने की जरूरत होती थी कि बसंत दीवान जी ने भेजा है। कमरे में आराम करने की जगह भी मिल जाती थी और चाय भी। इसका भुगतान बाद में दीवानजी करते थे।
कवि भगवती लाल सेन को ब्लड कैंसर था। वे रायपुर के एक अस्पताल में भर्ती थे। बसंत दीवान ने उनकी देखरेख का मानो जिम्मा ही उठा लिया। एक रोज भगवती भाई ने फरमाईश की- आलू बड़ी मुनगा अऊ डुबकी कढ़ी खाए के बहुत मन होवत हे। बसंत दीवान ने कहा- शाम के बनवा के लाहूं। भगवती भाई ने कहा- एक एक करके लानबे। दीवानजी ने कहा- दुनों सब्जी लानहूं। काली अऊ बताबे। तो ऐसे खयाल करने वाले दोस्त हुआ करते थे उन दिनों। उन्होंने आखिर तक भगवती भाई को नहीं बताया कि उन्हें ब्लड कैंसर है।
कार्यक्रम में सुशील त्रिवेदी, गिरीश पंकज, राजकुमार सोनी, प्रज्ञा त्रिवेदी, सौरभ शर्मा, संतोष झांझी और परिवार की ओर से समीर दीवान, रूपिंदर दीवान आदि मौजूद थे।