सुप्रसिद्ध प्रेस फोटोग्राफर और लेखक गोकुल सोनी से महानदी न्यूज डॉट कॉम की लंबी बातचीत (3)
जो लोग छत्तीसगढ़ में रहते हैं और नियमित अखबार पढ़ते हैं उनके लिए गोकुल सोनी का नाम अनजाना नहीं है। करीब चार दशक तक नवभारत के पन्नों पर उनकी खींची तस्वीरें छपती रही हैं। वे न सिर्फ बहुत अच्छे फोटोग्राफर हैं बल्कि बहुत अच्छे लेखक भी हैं। छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जुड़े विषय हों या फिर राज्य के दिग्गज नेताओं से संबंधित प्रसंग, गोकुल सोनी के पास ज्ञान और अनुभव का खजाना है। उन्हें छत्तीसगढ़ का चलता फिरता इनसाइक्लोपीडिया कहा जा सकता है। महानदी न्यूज डॉट कॉम ने उनसे उनकी इस लंबी यात्रा के अनुभव जानने के लिए बात की। प्रस्तुत है इस बातचीत की तीसरी किस्त।
0 प्रेस फोटोग्राफर का काम कितना रोमांचक, कितना श्रमसाध्य, कितना थकाने वाला होता है?
00 प्रेस फोटोग्राफी एक ऐसी विधा है जिसमें सभी तरह की फोटोग्राफी का समावेश होता है। किसी दिन ऐसा होता है कि सुबह किसी घटना में मृत व्यक्ति की फोटो खींचते हैं तो दोपहर में किसी खूबसूरत मॉडल की फोटो, शाम को सुहाने मौसम की और रात में किसी नेता का भाषण देते हुये फोटो खींचना होता है। इस काम में तरह तरह के लोगों से मिलने का मौका मिलता है जिसक कारण हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है। इस काम में देश के अलग अलग स्थानों में जाने का अवसर मिलता है। प्रकृति, अलग अलग प्रदेशों की संस्कृति और वहां का खान-पान, बोली-भाषा से रूबरू होने का भी अवसर मिलता है। वीवीआईपी जिनसे आम आदमी आसानी से नहीं मिल सकता उनसे हम बहुत आसानी से मिल लेते हैं। यदि उनकी फोटो अच्छी आ गयी तो वे हमसे फोटो मांगते हैं और हमारी दोस्ती भी हो जाती है। जान-पहचान का दायरा बढ़ जाता है। कभी कभी बहुत साधारण समझे जाने वाले फोटो के लिये हमें घंटों इंतजार भी करना पड़ता है। हमें समाज में सम्मान भी मिलता है तो कहीं अपमान भी सहना पड़ता है।
0 प्रेस फोटोग्राफर का काम खतरों से भी भरा होता है। ऐसे कुछ संस्मरण?
00 प्रेस फोटोग्राफी का काम खतरो से भी भरा होता है। कभी कभी अच्छी तस्वीर लेने के लिये हमें बड़े बड़े खतरे भी उठाने पड़ते हैं। एक किस्सा याद आ रहा है। एक बार तरुण चटर्जी दादा रेल रोको आन्दोलन के लिये एक जुलूस को लेकर रेल्वे स्टेशन की ओर जा रहे थे। पुलिस ने भीड़ को जेल रोड पर जेल के सामने रोक लिया। जेल रोड पूरी आ जाये और भीड़ भी दिखे, ऐसी फोटो के लिये मैं सड़क पर खड़ी एक बस के ऊपर चढ़ गया। उसी समय नीचे से किसी ने आवाज दी खड़े मत होना, ऊपर बिजली का नंगा तार है। अगर मैं उस दिन बस के ऊपर खड़ा हो गया होता तो बिजली के तारों की चपेट में आकर मेरी जान भी जा सकती थी। उस दिन मैं बाल बाल बच गया। खण्डपीठ आन्दोलन के समय आन्दोलनकारी कलेक्ट्रेट में एक नेता पर पत्थर फेंक रहे थे। अच्छी फोटो के लिये मैं बीच में चला गया। एक पत्थर मेरी कोहनी में जोर से लगा। पत्थर लगते ही मेरा कैमरा हाथ से छूट गया और मैं कांपने लगा। उस दिन अगर पत्थर सिर पर लगता तो मेरी जान भी जा सकती थी। कई बार हम लोगों ने पुलिस के डंडे भी खाये हैं। हमें कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़े हैं।
0 आपकी कुछ यादगार तस्वीरें और उन्हें खींचने की कहानी ?
00 मेरी हर तस्वीर मेरे लिये यादगार है क्योंकि सबके पीछे मेरी कड़ी मेहनत है। फिर भी कुछ तस्वीरें बेहद यादगार हैं। मुझे प्रकृति से जुड़ी तस्वीरें बहुत पसंद हैं। मैं ऐसी तस्वीरें खींचने दूर दूर गांव भी जाता हूं। एक बार फुण्डहर गांव में एक दृश्य दिखा। सुबह एक बैलगाड़ी वाला अपनी बैलगाड़ी को कच्ची सड़क पर ले जा रहा था। एक महिला गुंडी में पानी भर कर जा रही थी। उन दोनों पर बहुत सुन्दर सूरज की रोशनी पड़ रही थी। यह गांव की वास्तविक तस्वीर थी । मैंने अपने कैमरे में उसे उतार लिया। जनसंपर्क विभाग द्वारा एक बार प्रदेश स्तरीय फोटोग्राफी स्पर्धा करायी गयी तब मेरी इसी तस्वीर को प्रथम स्थान मिला और मुझे पैंतीस हजार की नगर राशि इनाम में मिली। (जारी)