वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट विनय शर्मा से महानदी न्यूज डाट काम की लंबी बातचीत (6)
फोटो पत्रकारिता में कब कहां क्या हो जाय कुछ कहा नही जा सकता। वो परस्थितियों पर निर्भर होता है। ऐसा कई बार हुआ है। लाठी चार्ज के दौरान कई बार चोटें आई हैं। कैमरा भी टूटा है। कई बार भागकर खुद जान बचानी पड़ी। कई बार परिचित पुलिसवालों ने हमें भीड़ से सुरक्षित निकाला। कई बार पुलिस आंसू गैस का प्रयोग करती थी। इस दौरान फोटो लेना कठिन होता था। लेकिन फोटो लेना जरूरी भी होता था। तो यह सब कुछ झेलते हुए हम अपना काम करते रहते थे।
आरपीएफ ने लाठी चार्ज कर दिया
एक बार रायपुर के रेलवे स्टेशन में कोई घटना घटी तो हम सब फोटो जर्नलिस्ट वहां पहुंचे। कैमरा निकालकर तस्वीरें ले रहे थे कि आरपीएफ वाले नाराज हो गए और उन्होंने हमें तस्वीरें लेने से रोका। चूंकि मामला जनसाधारण से जुड़ा था तो हम उनकी मनाही के बावजूद फोटो लेते चले गए। बात बात में मामला बढ़ गया। आरपीएफ ने लाठी चार्ज कर दिया। हमें बुरी तरह पीटा। कैमरा अलग टूटा। लोगों में इस घटना को लेकर बहुत आक्रोश भर गया। दूसरे दिन शहर बंद किया गया। राजनीतिक सामाजिक संगठनों ने आरपीएफ की भूमिका पर नाराजगी जताई। किसी तरह यह मामला शांत हुआ।
वीके चौबे जी ने बचाया
एक किस्सा मालवीय रोड का है। दो जुलूस यहां आमने सामने आ गए थे । मामला गंभीर था। हालात को काबू में करने के लिए बाहर से फोर्स बुला ली गई थी। एकाएक नारेबाजी होने लगी और भगदड़ मच गईं। इसे कंट्रोल करने के लिए लाठी चार्ज हो गया। हम सब फोटो जर्नलिस्ट वहीं तस्वीरे ले रहे थे। लाठी चार्ज कर रहे जवान हमें नहीं पहचानते थे। वो हमें भी मारने के लिए बढ़ने लगे। स्थानीय पुलिस अफसरों के बीच वहां वीके चौबे जी भी मौजूद थे। वे तत्काल हमारे और जवानों के बीच पहुंचे। जवानों को रोका। फिर हमें वहां से सुरक्षित निकाल ले गए। बाद में मैंने उन्हे बहुत धन्यवाद दिया कि आप के कारण हम बच गए वरना कुछ भी हो सकता था। चौबे जी से मेरे बड़े आत्मीय संबंध थे। वे बड़े सज्जन व्यक्ति थे। बड़े अच्छे से मिलते थे। फोटो जर्नलिस्ट के रूप में हम अक्सर उनके दफ्तर जाते रहते थे।
थाने तक पहुंचा मामला
आरपीएफ के साथ जुड़ा एक और किस्सा है। मैं अपने साथी रिपोर्टर के साथ स्टेशन गया था। वहां यात्री किसी बात को लेकर नाराज थे और वे प्रदर्शन कर रहे थे। मैं उनकी तस्वीरें लेने लगा। आरपीएफ के लोगों ने देखा तो मुझे फोटो के लिए मना किया। हमने कहा कि हम अखबार के लिए फोटो ले रहे हैं। वे नहीं माने। उन्होंने कहा कि थाने जाकर बात करें। हम थाने पहुंचे। वहां काफी देर तक बहस होती रही। बाद में मीडिया और राजनीतिक संगठनों के लोग भी आ गए। उन्होंने हमारा समर्थन किया।
ट्रेन से बचा मगर स्ट्रेचर से गिरकर घायल हो गया
रेलवे स्टेशन में एक बार में किसी स्टोरी फोटो के लिए अपने अखबार के रिपोर्टर के साथ घूम रहा था। एक ट्रेन रवाना हो रही थी। एक यात्री ट्रेन में चढ़ने के लिए तेजी से आगे बढ़ा पर उसे नहीं पकड़ पाया। इसी कोशिश में वह नीचे पटरियों पर गिर पड़ा। आसपास मौजूद सभी लोग घबरा गए। हम लोग भी सहायता के लिए दौड़े। हमारे देखते देखते ट्रेन उसके ऊपर से गुजर गई। सांस रोके लोग दुआ कर रहे थे कि किसी तरह से वो बच जाय। ट्रेन गुजरने के बाद पता चला कि वह सही सलामत है। जब ट्रेन उसके ऊपर से गुजर रही थी, वो दम साधे पटरी पर लेटा हु्आ था। उसे ज्यदा चोट नहीं आई। हम लोगों ने भी चैन की सांस ली। मगर किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ। रेलवे कर्मचारी मौके पर पहुंचे और उस यात्री को तुरन्त प्राथमिक उपचार के लिए एक स्ट्रेचर पर लिटाया। स्ट्रेचर का कपड़ा पुराना था। वह यात्री के भार से फट गया। यात्री प्लेटफार्म पर गिरा। उसे काफी जोर की चोट आई। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। मैंने पूरी घटना की तस्वीरें लीं। अखबार में वह इसी तरह प्रकाशित भी हुईं।
कैमरा टूटा, पीठ और पैर में लगी चोट
एक बार स्टेशन के बाहर एक घटना हुई थी जिसमें लाठी चार्ज हुआ था। इसमें मेरा कैमरा टूट गया था। पीठ और पैर में चोट लगी थी। हमारा ज्यादा नुकसान हो सकता था लेकिन पुलिस अधिकारी जीएस बांबरा साहब ने मौके पर पहुंचकर हमें बचा लिया। फिर हमें सुरक्षित जगह पर ले गए। लाठी चार्ज की इस घटना को लेकर लोगों में काफी आक्रोश था। कुछ प्रयासों के बाद हमें नुकसान का मुआवजा मिला। इसी तरह की कई घटनाएं हुईं। समाचार के फोटो लेने होते थे और झड़प का सामना हो जाता था।