रायपुर। कई बरस तक रायपुर के मीडिया जगत का सक्रिय हिस्सा रहे फोटोजर्ननिस्ट शारदादत्त त्रिपाठी नहीं रहे। ब्रेन हैमरेज के बाद उन्हें अस्पताल दाखिल किया गया था।
वे एक अच्छे फोटोग्राफर होने के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी थे। यारों के यार थे। खूब हंसी मजाक करते थे। दूसरी तरफ वे एक गंभीर और जिम्मेदार पारिवारिक व्यक्ति भी थे। अपने सरल स्वभाव के कारण वे किसी के भी दिल में जगह बना लेते थे। कई लोगों से उनकी एक दो मुलाकातें हुईं और उनके मन में शारदा जी ने हमेशा के लिए जगह बना ली।
ऐसे कई लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजली दी है।
वरिष्ठ फोटोजर्नलिस्ट और शारदा जी के करीबी रहे गोकुल सोनी ने लिखा है- साथियो, मेरे मित्र और वरिष्ठ फोटोजर्नलिस्ट शारदा दत्त त्रिपाठी जी की मृत्यु का समाचार सुनकर मैं बहुत दुखी हूं। उनकी यादें हमेशा मेरे दिल में रहेगी। मुझे याद है जब हम साथ बैठा करते थे तो वे हमेशा हम सभी के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास किया करते थे। गंभीर माहौल को वे खुशनुमा बना दिया करते थे। हम दोनों एक दूसरे को चाचा कहते थे । हंसी-मजाक, शब्दों से छेड़-छाड़, द्विअर्थी शब्दों का उपयोग करना हमारी दिनचर्चा था। जब उन्होंने स्वास्थ्यगत कारणों से फोटोग्राफी छोड़ दी, तो कभी कभी प्रेसक्लब आया करते थे। प्रेसक्लब के हाल में एक कोने पर जो उनकी निश्चित जगह होती थी, बैठते थे। मुझे देख कर कहते थे चाचा दूर-दूर क्यों बैठे हो पास आ जाओ। हम दोनों घंटों पास बैठकर गुफ्तगू किया करते थे। घर, परिवार, प्रेस, समाज और कुछ अन्य बातों का जो सिलिसला शुरू होता था तो देर तक चलता था। हम फोटोजर्नलिस्ट जब भी शहर से बाहर घूमने जाया करते थे त्रिपाठी जी हमारे साथ होते थे। हम दोनो यात्रा में पास पास बैठा करते थे। कभी-कभी वो मुझे चिढ़ाते तो कभी मैं उनसे मजाक किया करता था। हम-पेशा होने से प्रतिस्पर्धा के कारण कभी कभी हमारे बीच नाराजगी भी होती थी लेकिन वह ज्यादा दिन नहीं चलती थी। हम फिर एक हो जाते थे। कई बार हमलोग उनसे गंभीर मजाक भी कर दिया करते थे। एक घटना मुझे याद है किसी मित्र ने उन्हे बता दिया कि जेल में सुरंग बना कर कैदी फरार हो गये हैं। हमारे चाचा त्रिपाठी जी बिना कन्फर्म किये जेल की चारदीवारी के बाहर चक्कर लगाने लग गये। वहां से आकर हम लोगों पर खूब नाराज हुये। इसके अलावा उनकी खींची हुई अच्छी फोटो को हम लोग किसी दूसरे का बता कर उन्हे गुस्सा दिलाते थे तब भी वे नाराज नहीं होते थे। कुल मिलाकर काम की गंभीरता के बीच हम लोग आपस में उनके साथ हंसी-ठिठोली कर लिया करते थे और वे कभी बुरा भी नहीं मानते । अब उनके नहीं रहने से उनकी कमी हमें खलेगी। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। अलविदा मेरे चाचा मेरे मित्र।
वरिष्ठ पत्रकार गंगेश द्विवेदी ने लिखा है-बहुत ही दुखद….आदरणीय शारदा भैय्या के साथ दैनिक भास्कर में 4 वर्ष तक कार्य करने का अवसर मिला था। एक क्लिक में सटीक तस्वीर निकालना आपकी खासियत थी। तो खबरों के एंगल से लेकर स्टोरी आइडिया पर उनकी राय महत्वपूर्ण होती थी। अक्सर निजाम भैया उन्हें चच्चा कहकर ठिठोली करते थे, निजाम भैया के अलावा मजाल है कि कोई और उन्हें इस संबोधन से पुकार ले…उनके साथ की सुखद स्मृतियां हमेशा मुझे उनकी याद दिलाती रहेंगी। अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजली ।
बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुनील शर्मा ने लिखा है- वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट शारदा दत्त त्रिपाठी भैया से 11 साल पहले भोपाल के हबीबगंज स्टेशन पर मुलाकात हुई थी… वे रायपुर से ट्रेन पर सवार हुए थे और मैं बिलासपुर से…हम दोनों की एक ही मंजिल थी…भास्कर का संस्कार वैली स्कूल…वहां हमें एक सप्ताह तक ट्रेनिंग लेना था…एक ही कंपनी में काम करने के बावजूद हम एक दूसरे से अनभिज्ञ थे…पर हबीबगंज में वैली स्कूल के बस का इंतजार करते हुए परिचय हुआ.स्कूल में देश के कई शहरों से भास्कर के पत्रकार साथी आये थे…सब साथ में बहुत मस्ती किए… पढ़े और खेले भी पर उनका साथ अब तक याद है…आज उनके असमय जाने पर जैसे सब कुछ सामने किसी फिल्म की भांति चल रहा हो…वे सबकी फोटो खींचते थे…मैंने भी उनकी कुछ तस्वीरें उनके ही कैमरे से ली थी….भोपाल से लौटने के बाद कभी-कभी उनसे बात होती थी… आपका साथ याद रहेगा…विनम्र श्रद्धांजलि।
डा. विजय कापसे ने भी उन्हें इन शब्दों में याद किया है- इनसे मेरी कोई गहरी मुलाक़ात नहीं थी। लेकिन मेकाहारा और मेडिकल कॉलेज के कुछ कार्यक्रमों को कवर करने के लिए जब कभी भी उनका आगमन होता था, वे हमेशा ही मुझसे बड़ी सौम्यता और सम्मान से मिला करते थे। नया रायपुर में सेंध जलाशय के पास स्थित सत्य सांई संजीवनी हॉस्पिटल के शिलान्यास के समय, जेल रोड के होटल सेलिब्रेशन में दो दिवसीय कांफ्रेंस आयोजित की गई थी।इसमें सत्य साईं संजीवनी ट्रस्ट के द्वारा, “किस प्रकार निशुल्क चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना संभव हो पाता है”, इसके बारे में रायपुर के गणमान्य लोगों को परिचित कराने के लिए प्रस्तुतीकरण हुआ था। सामने से दूसरी या तीसरी पंक्ति में, मैं भी अपने एक चिकित्सक मित्र के साथ बैठा था। शारदा फोटोग्राफी के लिए पहुंचे हुए थे। भीड़ में उनका ध्यान मुझ पर गया, और उन्होंने अनेक फोटो के साथ-साथ, ऐसे एंगल से भी फोटो ली कि मैं उसमें शामिल हो जाऊं। दूसरे दिन जब अख़बार में फोटो छपी, तो मेरा वही चिकित्सक मित्र बड़ा ख़ुश होकर बोला कि “सर, आपका तो बड़ा जुगाड़ है प्रेस में”।
दूसरे दिन के कार्यक्रम में भी यही इत्तेफ़ाक रिपीट हुआ। और दूसरे दिन भी प्रेस मैटर के साथ जो फोटो रिलीज हुई, उसमें भी मैं और मेरा चिकित्सक मित्र दोनों दिखाई दे रहे थे। ऐसा क्यों हुआ था? ऐसा शायद इसलिए हुआ था कि शारदा के मन में मेरे प्रति भी एक सम्मान का भाव था। कभी कभार ही मुलाक़ात होने के बाद भी, वह शायद इंसानों को समझ पाने में सक्षम था। मैं शारदा दत्त त्रिपाठी को एक सौम्य व्यक्तित्व वाले अच्छे इंसान और अच्छे फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर याद रखूंगा। ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें।