- मिर्जा मसूद के चाहने वालों ने अर्पित किए श्रद्धा सुमन
रायपुर। मिर्जा मसूद नहीं रहे। इस खबर ने रायपुर और छत्तीसगढ़ के उन हजारों लोगों को मायूस कर दिया जिन्होंने उनके नाटक देखे, उनकी कमेंट्री सुनी या फिर जो आकाशवाणी रायपुर से रोज उनकी आवाज सुनते हुए बड़े हुए। सोशल मीडिया पर मिर्जा साहब को उन तमाम लोगों ने याद किया है। बहुत से वे लोग हैं जिन्होंने उनके साथ आकाशवाणी में काम किया, जिनको उन्होंने पत्रकारिता सिखाई-पढ़ाई, जिन्होंने उनके साथ नाटकों में काम किया और जिनका उनसे किसी न किसी रूप में राब्ता रहा।
बाबा कहकर पुकारना याद आएगा
मिर्जा साहब को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग ने लिखा है- एक और आवाज खामोश हो गई! सुबह की सबसे बुरी खबर थी मिर्ज़ा साहब यानी मिर्ज़ा मसूद जी का न रहना। वो रायपुर से इंदौर शिफ्ट हो गए थे । पूरा जीवन रायपुर में गुजारा और कल 20 जुलाई को अब इसी शहर रायपुर की खाक के सुपुर्द हो जाएंगे। जलील रिज़वी जी के बाद अब मिर्ज़ा साहब का निधन बहुत बड़ी क्षति है। शीर्ष रंगकर्मी,अंतरराष्ट्रीय हॉकी कमेंटेटर और उनकी आवाज तो जादू बिखेरने वाली थी। लेकिन मिर्जा मसूद के होने का मतलब इन सब से इतर भी था। मिर्जा मसूद जहां होते थे वहां इस शहर में सभ्यता और संस्कृति की एक पूरी पीढ़ी होती थी। वो जहां होते थे वहां समरसता ,प्रेम और तहज़ीब की ताजी हवा होती थी। आकाशवाणी उनके लिए नौकरी से बहुत ज्यादा थी। रेडियो लोकप्रिय बने,सूचना से लेकर कला के विविध आयाम तक उत्कृष्टता और लोकप्रियता का मंच बना रहे इसके लिए ना जाने कितने जतन उन्होंने किए होंगे। आकाशवाणी का जिक्र होता है तो तेजिंदर जी भी इसी तरह याद आते हैं। वो भी कुछ बरस पहले असमय छोड़ गए थे। ये सभी ऐसी हस्तियां थीं जो जीवन के अंतिम समय तक समाज को देती रहीं,जोड़ती रही, उत्कृष्टता ही बिखेरती रहीं…इन्होंने वो सब कुछ किया, दिया जो एक सभ्य समाज की जरूरत थी। इन सभी के ज़िक्र के साथ हमें अपने पिता स्मृति शेष यतेंद्र कुमार गर्ग भी इसी तरह याद आते हैं।ये रिश्ते जितने निजी थे, उतने सामाजिक,सांस्कृतिक,साहित्यिक भी। मिर्ज़ा मसूद विध्वंस के इस कठिन समय में रचनात्मकता का एक ऐसा धड़कता स्पेस थे जिसे भर पाना बहुत मुश्किल होगा। उनका बाबा कह कर पुकारना बहुत याद आएगा। अलविदा मिर्ज़ा साहब।
पीडि़त परिवार मन संग गोठ बात करे रेहेन
संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित रंगकर्मी राकेश तिवारी ने लिखा है- आदरणीय मिर्जा मसूद सर संग बहुत अकन नाटक मंच अऊ रेडियो में करे ला मिलिस,,,उंखर संग एक रूपक बनाए रेहेन,,अंधकार दंश,,जेखर बर छत्तीसगढ़ में पांच छै जगा,,जिंहा जिंहा टोनही उत्पीड़न होय हे ओखर परिवार वाले मन संग गोठ बात के रिकार्ड करे रेहेन जेमा प्रमुख रूप से बेमचा, तर्रा ,रतनपुर रिंगवार,गांव रहिस,,, रिंगवार के तो मैं अलग कहानी लिखे हव,,, कई गांव में हमन ला भगाए भी रहीस,,बाल बाल बांचें रेहेन,,,बहुत अकन सुरता हे,,,,आज निधन के समाचार सुनेव,,,सर ला सादर नमन।
उन्हें सुनते हुए बड़े हुए, वे पूरी पाठशाला थे
लंबे समय से रेडियो पर काम कर रही शुभ्रा ठाकुर ने उन्हें इन शब्दों में याद किया- आदरणीय मिर्ज़ा मसूद सर … आवाज़ और रंगमंच की दुनिया का एक ऐसा नाम, जो सिर्फ़ नाम नहीं, पूरी पाठशाला रहे। न जाने कितने ही लोगों को उच्चारण और अभिनय की बारीकियों से परिचित कराया… जिनकी दमदार आवाज़ जब रेडियो में गूंजती थी तो लोग कान लगाकर रेडियो सुना करते थे । हम जैसे लोग मिर्ज़ा सर को सुनते हुए ही बड़े हुए… उनकी लिखावट भी बहुत खूबसूरत और अलग सी थी । सर के साथ सीधे काम करने का अवसर तो नहीं मिल पाया लेकिन जब भी उनके नाटकों की प्रस्तुति होती थी, मेरा प्रयास रहता था कि मैं नाटक देखने ज़रूर जाऊं … स्वास्थ्यगत कारणों से सर इंदौर शिफ्ट हो गए थे… उसके बाद उनका आना नहीं हुआ…आज आएंगे भी तो … आदरणीय मिर्ज़ा सर को सादर नमन 🙏
अपने रंग में शामिल कर लेते थे
संस्कृति विभाग से संबद्ध रहे वरिष्ठ लेखक राहुल सिंह ने उन्हें याद करते हुए लिखा है- खबर मिली, मिर्ज़ा भाई नहीं रहे। आकाशवाणी रायपुर का पर्याय। छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग के लिए उनके द्वारा रिकॉर्ड किए गए साक्षात्कार अनमोल धरोहर हैं। बीसेक साल पुरानी यादें, ‘जसमा ओड़न’ नाटक उठाना था, मगर छत्तीसगढ़ी में। एक सुबह यह कहते स्क्रिप्ट थमा दी कि इसका छत्तीसगढ़ी रूपांतरण मैं करूं तभी वे नाटक उठाएंगे। तब पहली बार अनुवाद की सोचा, काम लटका रहा, मगर शुरू हुआ पेंड्रा रोड स्टेशन पर लेट हो गई ट्रेन के इंतजार में, तो वहीं पूरा भी हो गया। फिर पूरे रिहर्सल के दौरान गैर-छत्तीसगढ़ीभाषी कलाकारों का उच्चारण ठीक कराते और नाटक के रायपुर, बिलासपुर, कोरबा आदि प्रदर्शन के दौरान साथ रहा। मिर्ज़ा भाई, जिसे चाहें, अपने रंग में शामिल कर लेते थे।
कितना कुछ सीखा है उनसे
वरिष्ठ रंगकर्मी शेखर सेन ने मिर्जा मसूद को इन शब्दों में याद किया है- रायपुर से आई एक खबर ने उदास कर दिया। मिर्ज़ा मसूद साहब के निधन का समाचार मन को झिझोड़ गया। बचपन की ढेर सारी स्मृतियां घुमड़ने लगीं। कितना कुछ सीखा है उनसे । एक दिन कहने लगे -गजब और ग़ज़ब में क्या फ़र्क़ है? मैंने कहा ग़ज़ब को गजब कह दिया तो ग़ज़ब हो जायेगा। उर्दू में उच्चारण की हर ग़लती वो झट पकड़ लेते पर उतने ही प्यार से सुधार भी देते, उनके नाट्य निर्देशन में अभिनय भी किया, आकाशवाणी की अगणित यादें उमड़ रही हैँ। मिर्ज़ा साहब आप हमारे दिलों में रहेंगे हमेशा हमेशा-हमेशा।
उन्होंने मुझे पढ़ाना सिखाया
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर ने उन्हें याद करते हुए लिखा है- रायपुर की पहचान,शानदार खनखनाती आवाज खामोश हो गई, रंगमंच का चमचमाता नक्षत्र अस्त हो गया, यादों में जिंदा रहोगे मिर्जा साहब। रेडियो की वो जानी पहचानी धीर गंभीर आवाज,अब कभी सुनाई नही देगी। उद्घोषक यानी मिर्जा मसूद आकाशवाणी रायपुर के पर्यायवाची थे मिर्जा साहब।वे न केवल रेडियो के उद्घोषक थे बल्कि रंगमंच की शान भी थे।उन्होंने बहुत नाटक लिखे और कला के लिए उनके अतुलनीय योगदान के कारण नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से विशेष रूप से सम्मानित हुए।चक्रधर सम्मान से सम्मानित मिर्जा साहब वास्तविक जीवन में भी उसी धीर गंभीरता से बात करते थे और ऐसा लगता कि वे रेडियो पर ही बोल रहे हैं। मुझे उनके साथ काम करने का बहुत कम समय का अनुभव है लेकिन उतने कम समय में ही उन्होंने मुझे बता दिया था कि वे मेरे बुजुर्ग हैं और शुभचिंतक भी। तुनकमिजाजी चिड़चिड़ापन और गुस्सा अपनी खास पहचान है और मिर्जा साब ये सब जानते भी थे। जान पहचान तो बरसों पुरानी थी ही। अजय तिवारी के आग्रह पर जब मैं महंत कॉलेज में पढ़ाने पहुंचा तो सामना हुआ मिर्जा साब से। वे भी वहां पढ़ाते थे। मैंने उनसे कहा मुझे तो पढ़ाना आता नहीं है कैसे करूंगा, और फिर मेरी भाषा……मेरा वाक्य पूरा होने से पहले वे हंसे और उन्होंने कहा सब कर लोगे, चलो मेरी क्लास में बैठो और देखो फिर हम बात करेंगे। उसके बाद उन्होंने एक बुजुर्ग की तरह समझाया और जितने महीने मैंने पढ़ाया मुझे समझाते रहे। पर उनका साथ उनका संरक्षण उनके अनुभव का बहुत ज्यादा मेरे भाग्य में नही था। मेरी फितरत आड़े आ गई और मैंने एक दिन अचानक कॉलेज को टाटा कर दिया। मिर्जा साब ने मुझे बहुत समझाया, फिर कहा देखो पहली मुलाकात में क्या था, मेरी भाषा…. सुधर तो रही है न यहां। गालियां भी कम निकलती हैं अब। मैं हंस दिया। उस समय तो नहीं लेकिन आज उनके जाने के बाद लग रहा है कुछ समय और उनके साथ काम किया रहता तो तो थोड़ा तमीज और आ जाती। बातचीत का उनका अंदाज और हर विषय पर उनकी पकड़, उनका अध्ययन, उनका ज्ञान, सच में बेमिसाल थे मिर्जा साब। उनकी आवाज जरूर शांत हुई मगर यादों में जरूर खनकती रहेगी। सौ सौ नहीं, लाखों करोड़ सलाम मिर्जा साब। श्रद्धा के कुछ फूल मेरी ओर से भी।
पहले पन्ने पर छापना जरूरी नहीं समझा
वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर ने इस बात पर अफसोस जताया है कि मुख्यधारा के मीडिया ने मिर्जा मसूद के चले जाने को वह महत्व नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। उन्होंने लिखा है- छत्तीसगढ़ को गढ़ने वाली जिन शख्सियतों को जब कभी याद किया जाएगा, मिर्ज़ा मसूद उनमें से एक होंगे। लेकिन आज सुबह रायपुर के अख़बारों ने निराश किया। सिर्फ़ देशबंधु को छोड़कर रायपुर से निकलने वाले किसी भी प्रमुख अखबार ने उनके निधन की खबर को पहले पन्ने पर छापना जरूरी नहीं समझा। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने कल ही उनके निधन की खबर को पहले पन्ने पर छापा था। मैं यह उम्मीद कर रहा था कि रायपुर के प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने पर मिर्ज़ा मसूद की याद में कोई स्मृति लेख होगा। हैरानी तो यह भी हुई कि एक अखबार की दस लाइनों की खबर में साढ़े पांच लाइनें मुख्यमंत्री द्वारा मिर्जा सर को दी गई श्रद्धांजलि पर खर्च हो गईं! यह उम्मीद करना तो बेकार ही है कि उन्हें याद करते हुए रायपुर का कोई अखबार संपादकीय भी लिखेगा।
राजनीतिक गलियारे से
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है- छत्तीसगढ़ के मशहूर रंगकर्मी और आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक मिर्जा मसूद जी के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। उनके निधन से कला और साहित्य जगत को गहरा आघात पहुंचा है। ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिजनों को संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ।
पूर्व मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष डा. रमन सिंह ने कहा है- आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक और छत्तीसगढ़ के मशहूर रंगकर्मी मिर्जा मसूद जी के निधन समाचार से मन व्यथित है, चक्रधर सम्मान से सम्मानित मसूद जी का देहांत साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। ईश्वर से प्रार्थना है दिवंगत आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिजनों को संबल प्रदान करें।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है- चक्रधर सम्मान से सम्मानित प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं आकाशवाणी के उद्घोषक मिर्जा मसूद जी के निधन का समाचार दुखद है। ईश्वर मृतात्मा को शांति एवं शोकसंतप्त परिजनों को संबल प्रदान करें। मिर्जा मसूद जी का निधन कला और साहित्य जगत के लिए गहरी क्षति है।