रायपुर। छत्तीसगढ़ के बहुत से गांवों में बरसों से प्रवासी पक्षी आ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इन गांवों के लोग इन पक्षियों की आजादी का सम्मान करते हैं। इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते। बल्कि कई जगह इन्हें नुकसान पहुंचाने पर दंड का प्रावधान किया गया है।
शाहवाड़ा
बस्तर के चारामा के पास शाहवाड़ा को बर्ड विलेज के नाम से जाना जाता है। महानदी के तट पर स्थित इस गांव में पिछले बीस साल से एशियन ओपन बिल आ रहे हैं। पक्षियों के पहुंचते ही गांव में बैठक कर मुनादी करवा दी जाती है कि इन्हें कोई नुकसान न पहुंचाए। अन्यथा दंड दिया जाएगा। वन विभाग का एक गार्ड भी इन पर नजर रखता है। इन्हें नुकसान पहुंचाने पर कार्रवाई की जाती है।
कनकी
कोरबा जिले के कनकी गांव में करीब सौ साल से एशियन ओपन बिल बारिश से पहले आने लगते हैं और हसदेव नदी के किनारे पेड़ों पर घोंसले बनाने लगते हैं। ग्रामीण इन्हें बारिश का संदेश लाने वाले देवदूत मानते हैं। वे इनकी सुरक्षा की फिक्र करते हैं। वन विभाग ने पक्षियों की सुरक्षा के लिए इनके आवास वाले पेड़ों को तार से घेरा है। गांव वालों ने मांग की है कि गाज गिरने से हर साल बड़ी संख्या में पक्षी मारे जाते हैं। इससे सुरक्षा के उपाय किए जाने चाहिए।
लचकेरा
महासमुंद जिले का लचकेरा गांव बरसों से एशियन ओपन बिल का ठिकाना है। प्रजनन काल में ये पक्षी यहां आते हैं और घोंसले बनाकर अंडे देते हैं। अंडों से बच्चे निकलते हैं और उड़ने लायक हो जाते हैं तब ये अलग अलग ठिकानों की ओर उड़ जाते हैं। गांव में इन पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध है और इन्हें नुकसान पहुंचाने पर दंड का प्रावधान किया गया है। पक्षियों को आजादी से रहने देने का फैसला इस गांव की पहचान बन चुका है।
भखारा
धमतरी जिले के भखारा में इन पक्षियों का ठिकाना है। गांव वालों के मुताबिक ये बारिश का संदेश लेकर आते हैं। यहां भी इन पक्षियों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता। गांव के एक तालाब के बीच में बबूल के ढेर सारे पेड़ हैं। ये पक्षी इन्हीं पर घोंसले बनाते हैं। इनके साथ कोरमोरेंट और ब्लैक हेडेड आइबिस भी यहीं प्रजनन करते हैं। तालाब में और कई प्रजातियों के जल पक्षी स्थायी रूप से रहते हैं।
पाहंदा झा
दुर्ग जिले के पाहंदा झा गांव के तालाब में एशियन ओपन बिल और ब्लैक हेडेड आइबिस समेत कई जलीय पक्षियों का ठिकाना है। बड़ी संख्या में ये पक्षी यहां प्रजनन के लिए आते हैं। इनकी सघन कालोनी देखते बनती है। आसपास के खेतों में इन्हें अपना भोजन तलाश करते देखा जा सकता है। गांव वाले इनकी आजादी में खलल नहीं डालते।
ठकुराइन टोला
दुर्ग जिले के ठकुराइन टोला में भी एशियन ओपन बिल व अन्य अनेक पक्षियों का डेरा है। नदी तट पर स्थित पेड़ों पर ये घोंसले बनाते हैं। नदी और खेतों में इन्हें अपना भोजन मिल जाता है। ये बरसों से यहां अपना डेरा डालते आ रहे हैं। स्थानीय ग्रामीणों की तरफ से इन्हें कोई खतरा नहीं है इसलिए ये इनका स्थायी आवास हो गया है।
पड़ियाइन
मुंगेली जिले के पथरिया इलाके के गांव पड़ियाइन में पिछले तीन दशक से एशियन ओपन बिल प्रजनन काल में अपना ठिकाना बनाते आ रहे हैं। गांव वाले इनका आना शुभ मानते हैं और इनकी रक्षा करते हैं। चूंकि यहां इन्हें भोजन और सुरक्षा दोनों मिलती है इसलिए ये पक्षी यहां हर साल प्रजनन के लिए पहुंचते हैं।
फुटहामुड़ा
धमतरी के फुटहामुड़ा में भी बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी जुटते हैं। धमतरी वाइल्डलाइफ सोसायटी के मुताबिक ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, रेड वैटल्ड लैपविंग, लिटल रिंग प्लोवर, केंटिश प्लोवर, इंडियन कोर्सर, ओरिएंटल पैंटिकोल, स्मॉल पैंटिकोल, लिटल टर्न- फुटहामुड़ा में गर्मियों में प्रजनन करते हैं। इनके प्रजनन का छत्तीसगढ़ में और कहीं रिकार्ड नहीं है। फुटहामुड़ा गंगरेल जलाशय का ही एक हिस्सा है जहां पानी है, जंगल है, खेत हैं और इंसानों की आवाजाही कम है। यह प्रवासी पक्षियों के लिए आदर्श स्थिति है।
खतरे बढ़ते जा रहे
पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले धमतरी के गोपीकृष्ण साहू बताते हैं कि फुटहामुड़ा में केज कल्चर से मछली पालन हो रहा है। गर्मियों में जब पानी कम हो जाता है तो मछलियां मरने लगती हैं। इन्हें तट पर फेंक दिया जाता है। मरी मछलियों को खाने के लिए जंगली जानवर आते हैं जो पक्षियों के अंडे भी खा जाते हैं। यदि यह सिलसिला जारी रहा तो प्रवासी पक्षियों का यह स्वर्ग नष्ट हो जाएगा। उनका कहना है कि संबंधित विभागों को इस स्थान पर लोगों की आवाजाही को प्रतिबंधित करना चाहिए। केज कल्चर से मछली पालन बंद होना चाहिए। लोगों को बताना चाहिए कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों समेत सभी जीवों का अपना महत्व है। और इन्हें बचाना मानवजाति के अस्तित्व के लिए जरूरी है।