
4 मार्च, लाइनमैन दिवस पर विशेष
महानदीन्यूजडॉटकॉम डेस्क
बिजली विभाग में फील्ड वर्करों का काम बहुत कठिन होता है। उन्हें ऐसी जगहोें पर काम करना पड़ता है जहां पहुंचना आसान नहीं होता। साधन सीमित होते हैं। काम के घंटे तय नहीं होते। और लोगों की नाराजगी का दबाव अलग।
इंजीनियर के रूप में काम करते हुए मैंने फील्ड की तकलीफों को बहुत करीब से देखा। और पूरे समर्पण के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को भी।
एक घटना मुझे याद आती है। एक बार शहर के बाहरी इलाके में बिजली चली गई। जांच में पता चला कि एक खंबे में कुछ खराबी है। वह खंबा एक तालाब के बीचों बीच था। पता नहीं तालाब के बीच खंबा गाड़ा गया कि खंबे के आसपास तालाब खोद दिया गया। रात के बारह बज रहे थे और बारिश हो रही थी। तालाब पानी से लबालब भरा था। कुछ लोगों की टीम के साथ मैं तालाब के किनारे खड़ा फोन पर लोगों से बात कर रहा था कि कहीं से खंबे तक जाने लायक कुछ मदद मिल जाए।
पास की बस्ती में रहने वाले एक परिचित से पूछा कोई मदद मिल सकती है क्या? उन्होंने कहा कि अभी संभव नहीं हो पाएगा। आसपास रहने वाले मछली मारने वालों से पूछा कोई नाव मिल सकेगी क्या? उन्होंने भी मना कर दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी इंतजाम सुबह ही हो पाएगा।
जहां जहां से मदद मिल सकती थी, मैंने टटोलकर देख लिया। इतनी रात को कौन मदद करने आता। बिजली गुल होने की शिकायत करने वाले एक परिचित ने मदद के बारे में पूछने पर कह दिया कि हम रात ऐसे ही काट लेंगे। आप अब सुबह ही देखिएगा। मैंने निराश होकर लौटने का फैसला कर लिया।
पीछे मुड़ा ही था कि कुछ आवाजें सुनाई दीं। पीछे खड़े तीन चार कर्मचारी अपनी शर्ट पैंट उतार रहे थे। उनकी बातों से समझ में आया कि वे तालाब में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। मैंने इस दृश्य की कल्पना नहीं की थी। चारो ओर अंधेरा था। पानी बरस रहा था। रोशनी के नाम पर हमारे पास टार्च और मोबाइल फोन था।
चारों तालाब मेें उतरे। तैर कर खंबे तक पहुंचे। बिना किसी सीढ़ी के, खंबे पर चढ़े। फाल्ट सुधारने में करीब आधा-पौन घंटा लग गया। सीढ़ी पर चढ़कर फाल्ट सुधारना अलग होता है। यहां तो बगैर किसी सहारे के खंबे पर चढ़ना था, वहां टिके रहना था और काम भी करना था। काम पूरा करके वे लोग किनारे लौटे। हम सब थके हुए थे इसलिए अपने अपने घरों को रवाना हो गए।
लौटते समय मैं उन कर्मचारियों के बारे में ही सोचता रहा। मैंने सोचा मुझे इनके लिए पुरस्कार की सिफारिश करनी चाहिए। लेकिन दूसरे दिन फिर काम की व्यस्तता में सोचने का समय नहीं मिला। और धीरे धीरे बात आई गई हो गई। इतने साल बाद, आज भी मैं उन्हें याद करता हूं।
गर्मियों में चुनौतियां ज्यादा
बिजली वालों के लिए गर्मियों का मौसम चुनौतियों से भरा होता है। इस समय कूलर पंखों के कारण बिजली की खपत बढ़ जाती है। कटौती की नौबत आ जाती है। बिजली न होने के कारण कहीं पीने का पानी नहीं मिल पाता तो कहीं खेत के पंप बंद हो जाते हैं। जब ऐसा बार बार होने लगता है तो खास तौर पर किसान आंदोलित हो जाते हैं। वे बिजली दफ्तर का घेराव कर देते हैं। और कभी कभी कर्मचारियों को बंधक बना लेते हैं। मैंने ट्रैक्टर से जाते बारातियों को देखकर बिजली वालों को छिपते देखा है। यह सोचकर कि कहीं ये किसान तो नहीं जो उनके दफ्तर का घेराव करने आ रहे हैं। बिजली कटौती के दिनों में फोन पर लोगों की नाराजगी झेलना तो जैसे बिजली वालों की दिनचर्या का हिस्सा हो जाता है।
यह देखकर दुख होता है कि बिजली व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद फील्ड वर्कर्स के लिए साधन सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। आज भी एक लकड़ी की लंबी सीढ़ी को दो साइकिलों से बांधकर ले जाते बिजली कर्मचारी दिख जाते हैं। खंबे से गिरकर या करंट से बिजली कर्मियों की मौत की खबरें भी आती रहती हैं। दूसरों की जिंदगी रौशन करने वालों की जिंदगी में पता नहीं इतना अंधेरा क्यों है?
(एक इंजीनियर के अनुभवों पर आधारित)