पुराना घर
इन दिनों मैं एक पुराने घर को ठीक करवा रहा हूं। यह शहर के करीब 13 किलोमीटर दूर है। यह हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के करीब 2000 मकानों में से एक है। इसे खरीदने के लिए मां ने पंद्रह-बीस साल पहले दो तीन लाख रुपए दिए थे। दस हजार बड़ी बहन ने दिए थे। मकान करीब पौने चार लाख में पड़ा। तब से उपेक्षित पड़ा था। अब, जबकि रिटायरमेंट करीब है, मैं इसे ठीक करवा रहा हूं ताकि रहने लायक हो जाए। रिटायर होने के बाद पता नहीं पैसे कहां से आएंगे और सफाई, बिजली, मेंटेनेंस का टैक्स भी चुका पाऊंगा कि नहीं।
मकान की हालत सुधारने पिछले कुछ साल से प्रयास जारी है। अपनी अराजकता के कारण, सेहत के कारण, आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण कुछ खास नहीं करवा पाया। फिर तय किया कि यहीं रहा जाए। रहने से पता चलेगा कि पहले क्या ठीक करवाना है। वैसे तो इसे नया बनवाना ही ठीक रहेगा। लेकिन पैसे नहीं हैं। और फिर अपनी उम्र भी कितनी बची है, पता नहीं।
तो पिछले कुछ अरसे से लगभग रोज वहीं आना-जाना, रहना शुरू कर दिया है। सच तो यह है कि मकान में सुधार जितना नहीं हुआ है, उससे ज्यादा मुझे समस्याओं के बीच रहने की आदत पड़ती जा रही है। फिर भी कुछ काम हुआ है। कुछ हो रहा है।
मैंने करीब पंद्रह साल पहले मकान का पजेशन यानी कब्जा लिया था। इंजीनियर ने कुछ कागजात पर दस्तखत लिए और नल की टोंटियां वगैरह दीं। कहा कि जब यहां रहने लगो, तभी इन्हें लगवाना। वरना यहां चोरियां बहुत होती हैं।
कब्जा लेने के बाद पहली बार मकान के भीतर गया। बहुत खुश हुआ। मां और बहन को मन ही मन धन्यवाद दिया। यहां रहने के बारे में सोचने लगा।
बाहर निकला तो हाउसिंग बोर्ड का एक पियक्कड़ कर्मचारी खड़ा था। उसने कहा- इतने दिन तुम्हारे मकान की देखरेख की। कुछ खर्चा पानी दे दो।
मुझे शराब के लिए पैसे देने की इच्छा नहीं हुई। मैंने कहा- अभी तो नहीं हैं मेरे पास।
अंतत: मैंने उसे पैसे नहीं दिए।
दूसरे दिन आया तो किचन की खिड़की का कांच टूटा था। पीछे का दरवाजा खुला था। बिजली के तार टूटकर कमरे में फैले थे। स्विच और होल्डर इधर उधर बिखरे थे।
घर में चुराने लायक कोई चीज तो थी ही नहीं। खाली मकान था। चोर ने बिजली के तार चुराए थे। मेरा पहला शक उसी पियक्कड़ पर गया। इतने दिनों तक तो कोई चोरी नहीं हुई। मेरे पजेशन लेने के दूसरे ही दिन चोरी हो गई। मैंने पजेशन लिया है यह बात इंजीनियर और पियक्कड़ को ही पता थी। बाद में मेरे दोस्तों ने बताया कि इतनी छोटी चोरी कोई शराबी ही कर सकता है। पुलिस पर मुझे शायद भरोसा नहीं था। और मुझे लगा कि शिकायत करूंगा तो मुझे ही परेशान होना पड़ेगा। सो मैंने किसी से शिकायत नहीं की।
फिर कई साल तक मकान उपेक्षित ही पड़ा रहा।
कुछ साल बाद जब हमने किराए का एक मकान छोड़ा तो बहुत सा गैरजरूरी सामान इस मकान में लाकर रख दिया। फिर और भी बहुत सा गैर जरूरी सामान यहां लाकर रखा गया।
घर में बिजली थी नहीं। पानी भर था। सोने के लिए बिस्तर तो दूर, बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं थी।
बाद में मैंने एक दीवान यहां लाकर रखा। एक दो कुर्सियां भी।
फिर गैस का कनेक्शन भी ले लिया। और स्टोव भी।
बिल न पटाने के कारण नल का कनेक्शन कट गया था। बकाया बिल पटाकर नया कनेक्शन लगवाया। पाइप सड़ चुके थे। मेन लाइन से लेकर घर के भीतर तक, सारे नए पाइप लगाने पड़े।
एक बार आंधी आई और ओले गिरे तो कई घरों की पानी टंकियां टूट फूट गईं या उड़ गईं।
मेरे घर में भी यही हुआ। तो मुझे पानी टंकी भी नई लगवानी पड़ी।
बहुत बाद में पूरे घर की नई वायरिंग करवाई। बिजली का कनेक्शन लिया।
गर्मियों में कूलर लिया। एक बार बिगड़ा तो उसे सुधरवाना भी पड़ा। कुछ दिन विंडो कूलर को रूम कूलर की तरह इस्तेमाल किया। फिर उसे खिड़की में फिट करवाया।
बारिश में छत टपकने लगी तो चेक करवाया। छत का पानी नीचे जाने के रास्ते जाम थे। प्लंबर ने बताया कि छत में काफी पानी जमा है। वही टपकने का कारण है।
तो छत की यह खामी सुधरवानी पड़ी।
तो आज मेरे पास एक पलंग है, एक कुर्सी है, बिजली है, पानी है, किचन में गैस स्टोव है, बर्तन हैं। अलमारी है, कपड़े हैं। ढेर सारी किताबें हैं, और खूब सारी धूल है जो मुझसे साफ नहीं की जा रही।
मेरे घुटनों और कमर में तकलीफ है। मैं नीचे बैठ नहीं सकता।
घर की सफाई करने बैठूं तो थक जाऊंगा।
हालांकि न थककर भी अभी तक कोई महान काम नहीं कर पाया हूं। कुछ बार पसंद का खाना बनाकर खाया है. और कुछ रूटीन में बना ही लेता हूँ.
बीच में चूहों ने बहुत उत्पात मचाया। मैंने एक एक कर चूहेदानी से पांच चूहे पकड़े। और उन्हें दूर छोड़ दिया।
कुछ दिनों तक शांति रही। फिर उत्पात शुरू हो गया।
इस बार किचन के साथ साथ बाथरूम भी निशाने पर था।
एक दो बार नहाने के साबुन को कुतरा और एक बार साबुन ही ले गया।
मैंेने साबुन दूसरे कमरे में रखना शुरू कर दिया।
फिर बाथरूम की टाइल्स धंसने लगी। धंसकर टूटने लगी। मुझे लगा यह केकड़ों का काम है जिन्होंने आंगन में कई बिल बना रखे हैं। प्लंबर की राय थी कि यह चूहों का काम है।
जो भी हो, यह तय किया कि इसे सुधरवाना तो है। एक मेरे अकेले का काम तो चल जाएगा मगर कभी कोई आ जाए तो बाथरूम तो सही हालत में होना चाहिए।
एक रोज प्लंबर रास्ते में दिख गया। उससे कहा कि बहुत सारा काम करना है एक एक कर। तुम आना किसी दिन।
दो तीन दिन बार प्लंबर पहुंचा। मैंने उसे बाथरूम की हालत दिखाई।
उसने कहा- नई टाइल्स लगानी पड़ेगी। इससे पहले पुरानी टाइल्स हटाकर मिट्टी पर धुम्मस चलाना होगा। फिर कंक्रीट की एक परत डालनी होगी। उस पर टाइल्स लगेंगी। उसने कहा- कंक्रीट तक का काम मैं खुद कर दूंगा।
दूसरे दिन वह आया। मुझे लगा कि टूटी हुई टाइल्स निकालने के बाद बची हुई टाइल्स काम आ जाएंगी।
प्लंबर ने कहा- एक बार इस्तेमाल हो जाने के बाद टाइल्स दोबारा इस्तेमाल नहीं होती। उसे तोड़ना ही पड़ता है।
तो उसने सारी टाइल्स और साथ साथ किफायत की मेरी कोशिश पर भी हथौड़ा चला दिया।
फिर हम जाकर सीमेंट लाए। वह पड़ोस से रेत और बजरी ले आया। बाथरूम में ही मसाला तैयार करके फैला दिया।
अगले दिन टाइल्स लगाने वाला आया। उसकी टाइल्स काटने की मशीन खराब हो गई थी। उसे बनवाने दिया तो वहां और टूट फूट गई। तो उसने दूसरी किसी मशीन से काम किया जो शायद लोहा काटने वाली मशीन थी। उसने इस चक्कर में दो टाइल्स तोड़ भी दी। पर कुल मिलाकर टाइल्स लग गईं। प्लंबर ने कहा कि पानी जाने के रास्ते में स्टील की जो जाली लगानी है, वह मैं कल आकर लगा दूंगा।
वह दूसरे दिन आया। और देखकर बताया कि पानी जाने के रास्ते में चूहों ने मिट्टी भर रखी है। पूरा हाथ घुसाकर उसने मिट्टी और दूसरा कचरा निकाला।
फिर उसने बेसिन की जाली भी उखाड़ी और वहां से भी कचरा निकाला।
वह रसोई की जाली भी उखाड़ने वाला था। फिर उसे लगा कि यह ठीक ही है। इसे रहने देते हैं।
किसी काम से उसने बाथरूम का नल चालू किया। पानी बहुत धीरे धीरे आ रहा था। उसने टोंटी खोल दी। पर पानी वैसे ही धीरे धीरे आ रहा था।
फिर उसने बाहर जाकर पाइप पर एक दो बार हथौड़े मारे और आकर बताया कि पाइप तो टूट गया। एकदम सड़ चुका था।
फिर हम नया पाइप खरीदने गए। उसने कहा- पौन की जगह एक इंच का पाइप लगा देते हैं। पानी फोर्स के साथ आएगा।
नई पाइप लगाने के बाद भी पानी में फोर्स नहीं आया।
उसने कहा- पाइप का कुछ हिस्सा पुराना है। वह दीवार के भीतर है। उसमें कचरा है लगता है। उसे वैसे ही रहने देते हैं। मैं आपको टंकी से नया कनेक्शन दे देता हूं। पुराने नलों की जगह नये लग जाएंगे। कालोनी के एक घर में मैं ऐसा कर चुका हूं।
मैंने कहा- इसे फिर कभी कर लेंगे। अभी पैसे नहीं हैं। पहले टायलेट और बाथरूम की ग्रिल बदलनी है जो पूरी तरह सड़ चुकी है।
हम जाकर दो नई ग्रिल ले आए।
आज उसने ग्रिल को सैंड पेपर से रगड़कर पहले प्राइमर और फिर पेंट लगाया।
कल मिस्त्री आएगा और पुरानी हटाकर नई ग्रिल फिट करेगा।
अगले दिन दरवाजे ठीक करवाए जाएंगे जिनके कब्जे खुल गए हैं। इन दरवाजों की चिटकनी नहीं लगती। टायलेट और बाथरूम का काम तो ऐसे नहीं चल सकता।
फिर काम बच जाएगा डिस्टेंपर लगाने का।
भगवान करे ग्रिल लगाने के दौरान कुछ और न टूट फूट जाए। और दरवाजे भी सिर्फ कब्जे सुधारने से सुधर जाएं.
इसके बाद ढेरों काम हैं। बाउंड्री बनवानी है। बाहर का प्लास्टर करवाना है। पोताई करवानी है। घर के दूसरे दरवाजे बदलवाने हैं। खासतौर पर रसोई का दरवाजा जो पीछे खुलता है। यह कहना ज्यादा सही होगा कि जो नहीं खुलता है। अभी उसके नीचे बना छेद चूहे के आने जाने का मुख्य रास्ता है। टाइल्स वाला मिस्त्री बोल रहा था कि दो तीन लाख लग जाएंगे.
लगता है आने वाला जीवन मकान की देखरेख में ही जाएगा। यह बुजुर्गों की सेवा जैसा काम है। जब तक सांस चल रही है, सेवा करनी है। पुराना मकान है। नई नई समस्याएं पैदा होती रहेंगी। यह नए जैसा कभी नहीं हो पाएगा। ऊपर से भले नए जैसा दिखे पर अंदर से कमजोर होता जाएगा।
मैं खुद एक पुराना मकान हूं। घुटने और कमर में दर्द रहता है। झुक नहीं सकता। नीचे आसानी से बैठ नहीं सकता। जल्दी थक जाता हूं। खुद का वजन खटकता है। पर कम करने का कोई उपाय नहीं कर पाता।
मकान तो खैर साल भर में नया जैसा दिखने लगेगा।
मेरी किस्मत में तो शायद इतना भी नहीं है।