
रायपुर।
रायपुर में जो लोग संगीत में रुचि रखते हैं, वे शकील भाई को अच्छे से जानते हैं। मोहम्मद रफी के गाने उनकी पहचान हैं। डूब के गाते हैं। अपने साथ साथ सुनने वालों को भी झूमने पर मजबूर कर देते हैं। उम्र के साठ दशक पार कर चुके हैं। लेकिन जिंदादिली बरकरार है। आज भी वे रोज देर रात गानों का रियाज करते हैं। रफी के 140 गाने उन्हें जुबानी याद हैं। सुनने वाले हैरत में पड़ जाते हैं कि बगैर देखे वे कैसे इतने सारे गाने याद रख पाते हैं।
शकील भाई बताते हैं कि वे रायपुर के एक कारोबारी परिवार से हैं। बचपन से उन्हें गाने सुनने का शौक था। सुनकर वे गुनगुनाते भी थे। जानने पहचानने वालों को पता था कि लड़का गाता है। एक शादी के कार्यक्रम में उन्हें किसी ने गाने का मौका दे दिया। उन्होंने गाया और लोगों ने उन्हें बहुत पसंद किया। बस इसके बाद वे एक लंबे सफर पर निकल पड़े। तब उनकी उम्र महज 12 साल थी। आज रायपुर के अनगिनत कार्यक्रमों में उन्होंने रफी के गाने सुनाकर सुनने वालों का दिल जीता है।
गांधी उद्यान स्थित बापू की कुटिया में रोज सुबह शाम वरिष्ठजन जुटते हैं। शकील भाई इस महफिल की जान हैं। लोग उनके गाने भी सुनते हैं और अपने गाए पर उनकी राय भी लेते हैं। शकील भाई जरूरत के हिसाब से मार्गदर्शन भी करते हैं और हौसला अफजाई भी।
इस उम्र में भी वे अच्छे खासे सेहतमंद हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने कभी सिगरेट शराब जैसा कोई ऐब नहीं पाला।
रफी के गाने ही उनका नशा है। वही उनकी इबादत है।