चित्रसेन साहू छत्तीसगढ़ के पर्वतारोही हैं जो दुनिया भर की कई चोटियां फतह कर चुके हैं। वो भी कृत्रिम पैरों के सहारे।
वे यहां की युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श हैं। उन्हें देखकर सीखा जा सकता है कि अगर हम कुछ करना चाहते हैं तो बड़ी बड़ी बाधाएं भी हमें रोक नहीं सकतीं।
हम आराम का जीवन जीने के आदी लोग घरों की कुछ सीढि़यां चढ़कर हांफ जाते हैं। वहीं चित्रसेन पहाड़ चढ़ जाते हैं। उन्हें बर्फीले तूफान भी नहीं रोक पाते। रोकते भी हैं तो वे अगली बार कोशिश करते हैं।
उनसे मिलना न सिर्फ हमारे लिए बल्कि हम सबके लिए प्रेरणादायी होगा, यह सोचकर हमने उनसे मुलाकात की। उन्होंने बताया कि वे मूलत: बालोद जिले के रहने वाले हैं। भाटापारा में करीब 15 साल पहले हुए एक हादसे में उनके दोनों पैर घुटनों से काटने पड़ गए। मगर दोस्त यार साथ थे, परिवार साथ था इसलिए हिम्मत नहीं हारी। अस्पताल से बाहर आए तो सोच यह थी कि न सिर्फ अपना जीवन सम्मान से जीना है बल्कि दूसरों को भी कठिन हालात से जूझते हुए जीना सिखाना है। बस, इसके बाद जो है वो सबके सामने है।
उन्होंने एक बार फेसबुक में अपनी वह तस्वीर पोस्ट की थी जिसमें वे हादसे के बाद हास्पिटल की बेड पर दिखाई दे रहे हैं। लेकिन चेहरे पर मुस्कान है. तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा था- ये मुस्कुराती हुई तस्वीर दोस्तों के साथ हॉस्पिटल की है जब मेरे दोनो पैर कट चुके थे, डिस्चार्ज होने के पहले टकला हुआ और एकदम मस्त फोटो लिए.
मुस्कान एक ऐसी चीज है जिसे आपसे कोई छीन नहीं सकता…समय, परिस्थिति बदलती रहेगी, जिंदगी में उतार चढाव आते रहेंगे,पर जिंदगी जीने का नजरिया हमेशा एक होना चाहिए। मैंने हमेशा मुस्कुराना चुना, शायद इसके अलावा कोई बेहतर विकल्प भी नहीं है। जब लोगों के पास विकल्प होते हैं तो ज्यादा कन्फ्यूज होते हैं। एक सबसे अहम बात ये है कि जो हो चुका है उसकी स्वीकार्यता बहुत जरूरी है। लोग अक्सर उसे ही स्वीकार नहीं कर पाते और पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता। आज ही के दिन 9 साल पहले 4 जून 2014 को एक हादसा हुआ जिसके कारण बाद में दोनों पैर काटने पड़े। मुझे अक्सर ये भगवान के द्वारा पहले से तैयार की गई स्क्रिप्टेड स्टोरी लगती है। पूरे होशो हवास होते हुए इस घटना की वास्तविकता को आज तक नहीं समझ पाया लेकिन तुरंत स्वीकार कर लिया। मुझ पर ईश्वर की कृपा थी जो इतनी बड़ी घटना का आसानी से सामना कर पाया, अपितु उसके बाद जो मुझे मिला वो अविश्वसनीय है। मुझे थोड़ी मेहनत में बहुत कुछ मिला है। उसके लिए मैं ईश्वर के साथ साथ अपनें परिवार, दोस्तों और चाहने वालों का विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं। मुझे कम समय में ही ऐसे अनुभवों का सामना करना पड़ा है ,बस इस यात्रा में सीखने की कोशिश लगातार जारी है। महसूस करता हूं कि जिंदगी में समस्याएं कभी छोटी बड़ी नहीं होती हैं, कभी कभी हम छोटी समस्याओं में अधिक निराश होते हैं, फंस जाते हैं किंतु लगातार हंसते मुस्कुराते चलते रहना, अपने कर्म करते रहने का नाम जिंदगी है। ये मुस्कान बरकरार रहेगी। बस आप सबका प्यार और आशीर्वाद हमेशा बना रहे।
हास्पिटल से बाहर आकर वे अंचल की छोटी बड़ी पहाडि़यों पर चढ़ने का अभ्यास करने लगे। पर्वतारोहण की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। लेकिन लगन मेहनत और हौसले ने यहां तक पहुंचा दिया।
चित्रसेन तंजानिया में माउंट किलीमंजारो, आस्ट्रेलिया में माउंट कोजीअस्को और रूस में माउंट एलब्रुस और दक्षिण अमरीका की एकांकगुआ फतह कर चुके हैं। वे देश के पहले डबल एंप्यूटी हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। चित्रसेन के दोनों पैर कृत्रिम हैं जिन्हें प्रोस्थेटिक लेग कहा जाता है।
पैरा बास्केटबाल और पैरा स्विमिंग के वे नेशनल प्लेयर हैं और कई खिलाब अपने नाम कर चुके हैं।
एकांकगुआ चोटी 6961 मीटर ऊंची है। 2019 में उन्होने 5685 मीटर ऊंची किलीमंजारो चोटी फतह की थी। वे अपने अभियानों को मिशन इनक्लूजन का नाम देते हैं। वे प्लास्टिक मुक्त विश्व का संदेश देते हैं। दिव्यांगों में हौसला जगाते हैं।
कृत्रिम पैरों की वजह से उन्हें एक आम पर्वतारोही की तुलना में 65 फीसदी अधिक ताकत लगानी पड़ती है। अपनी धीमी गति के कारण वे दूसरों से पीछे रह जाते हैं लेकिन उनसे सहयोग से यात्रा पूरी करते हैं। दक्षिण अमरीका में शून्य से तीस डिग्री नीचे तापमान पर, बर्फबारी के बीच उनकी यात्रा पूरी हुई। एकांकगुआ शिखर एशिया महाद्वीप से बाहर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है।
कोई उन्हें छत्तीसगढ़ का ब्लेड रनर कहता है तो कोई हाफ ह्यूमन रोबो।
छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने प्लास्टिक फ्री अभियान के लिए उन्हें अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया है।
हमारा मानना है कि उनकी कहानी पाठ्यपुस्तकों में होनी चाहिए।
- महानदी न्यूज डेस्क