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महानदी न्यूज डेस्क
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजे घोषित हो गए हैं। 3 दिसंबर को हुई मतगणना के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है। इन नतीजों को अप्रत्याशित माना जा रहा है। क्योंकि राजनीतिक जानकार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनते देख रहे थे। यह माना जा रहा था कि कांग्रेस की जीत का मार्जिन जरूर कम हो सकता है। खुद भाजपा के अंदरूनी आकलनों के बारे में जो खबरें आ रही थीं उनमें भी यही कहा जा रहा था कि पार्टी सरकार बनाने लायक सीटें हासिल नहीं कर पाएगी। कहने को भले भाजपाई यह कह रहे हों कि हमारी सरकार बन रही है।
लेकिन तय हो गया है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बन रही है।
अब इस पर मंथन शुरू हो गया है कि भाजपा क्यों जीती और कांग्रेस क्यों हारी। भाजपा की जीत से ज्यादा अचरज लोगों को कांग्रेस की हार से हो रहा है।
चुनाव नतीजों पर अगर पार्टियों के केंद्रीय नेतृत्व का असर देखना है तो कहना होगा कि कांग्रेस की तुलना में भाजपा के पास बहुत दमदार नेतृत्व है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तुलना में जमीनी राजनीति के मामले में राहुल गांधी कम अनुभवी हैं। और इतने जमीनी नहीं हैं। प्रियंका गांधी भी इतनी जमीनी नहीं हैं। यह परसेप्शन इन नतीजों से ठीक ही साबित हुआ है। जहां राहुल और प्रियंका की सभाएं हुईं वहां कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी की सभाओं वाली सीटों पर भाजपा को जीत मिली है।
हालांकि राहुल गांधी को उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जनसमर्थन मिलता दिखाई दिया है। लगातार सार्वजनिक जीवन में रहते हुए उन्हें देश की असल जिंदगी के बारे में अनुभव हो रहे होंगे। लेकिन मोदी और शाह का विकल्प बनने के लिए उन्हें अधिक मेहनत और इंतजार की जरूरत है। हालांकि ऐसा नहीं कि चुनावी जीत के लिए रणनीतिकार होना जरूरी है। अच्छी छवि भी जीत का कारण बनती है। लेकिन देश को शायद इस वक्त नरेंद्र मोदी की जरूरत है। सांप्रदायिक मोर्चे पर केंद्र की भाजपा सरकार और उत्तरप्रदेश की सरकार का जो काम है, उसे शायद जनता ने अभी जारी रखना ठीक समझा है। शायद यह कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियों के पाप धोने का अनुष्ठान है। आप इस बात से असहमत हो सकते हैं। लेकिन ये जो हो रहा है, उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।
इस चुनाव के केंद्र में भूपेश बघेल थे। कांग्रेस ने उनके चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा था। वे मुख्यमंत्री थे और स्वाभाविक रूप से यह मतदान उनके कामकाज पर था।
भूपेश बघेल 15 साल के भाजपा कार्यकाल को खत्म करते हुए सत्ता में आए थे। उन्हें एक तेज तर्रार और जुझारू नेता के रूप में देखा जा रहा था जिससे छत्तीसगढ़ की स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने की उम्मीद थी। और इस मोर्चे पर उन्होंने बहुत काम किया। यहां के तीज त्योहारों पर छुट्टी की घोषणा की। स्थानीय त्योहारों का सीएम हाउस में आयोजन किया। उन्होंने खुद भंवरा चलाकर, गेड़ी चढ़कर नदी-तालाब में गोते लगाकर यह जताया कि वे खांटी छत्तीसगढि़या हैं। यहां के आम जन के भोजन बासी को उन्होंने सोशल मीडिया का फैशन बना दिया। छत्तीसगढ़ की संस्कृति फूलने फलने लगी। यहां के लोगों के आत्मगौरव को ताकत मिली। वे कका के नाम से संबोधित किए जाने लगे और उन्हें लेकर कका अभी जिंदा हे जैसे जुमले बनने लगे। यह लग रहा था कि बरसों से उपेक्षित छत्तीसगढ़ी अस्मिता उन्हें एक और कार्यकाल जरूर देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ऐसा क्या हो गया?
बहुत से लोगों का मानना है कि भावनात्मक मुद्दों पर तो भूपेश बघेल ने समर्थन हासिल किया लेकिन एक सरकार को जनहित के जो काम करने चाहिए, उनमें उनकी सरकार नाकाम रही। शराबबंदी का उसने वादा किया लेकिन बाद में कह दिया कि इसे एकाएक लागू करना संभव नहीं है। गायों के लिए उसने गोठान बनाए लेकिन गायें सड़क पर नजर आती रहीं और गोठान राजनीति के अड्डे बन गए। सरकारी प्रचार में जरूर गोठानों से महिलाओं को रोजगार मिला लेकिन गोठानों की बदहाली की तस्वीरें भी सामने आती रहीं।
फिर भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाना शुरू किया। चुनाव से पहले कांग्रेस से जुड़े लोगों पर ईडी की कार्रवाइयां हुईं। पार्टी और सरकार से जुड़े लोग गिरफ्तार भी हुए। कुछ लोगों का मानना था कि इन कार्रवाइयों से राज्य सरकार के प्रति लोगों के मन में सहानुभूति ही उपजेगी। लेकिन सहानुभूति उपजी भी हो तो वह इतनी नहीं थी कि चुनावी नतीजों को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ दे। पीएससी और महादेव एप से जुड़े आरोपों में लोगों को शायद सच्चाई नजर आई।
एक बात भूपेश बघेल की सरकार के बारे में अक्सर कही जाती है कि उसने छत्तीसगढि़या भावनाएं जगाने के अलावा किया क्या? जैसे रायपुर पश्चिम में बड़े बड़े निर्माण हुए वैसा कुछ लोग देखना चाहते थे। उनका कहना था कि ऐसा जमीनी काम इस सरकार ने नहीं किया। हालांकि रमन सरकार ने यह सब कुछ 15 साल में किया। इसलिए यह माना जा रहा था कि कांग्रेस को एक मौका और मिलेगा ताकि वह कुछ काम करके दिखा सके। लेकिन यह मौका उसे नहीं दिया गया।
अभी बहुत चिंतन और मंथन होगा। आत्मावलोकन होगा। गलतियां खोजी जाएंगी। उनका निराकरण खोजा जाएगा। भूपेश बघेल और कांग्रेस के पास यह करने के लिए पांच साल होंगे। तब तक नई सरकार काम करेगी। पिछली हार से सबक लेते हुए। अगर उसने सबक न लिए तो कांग्रेस के लिए फिर सत्ता में आने का मौका होगा। अब यह उस पर है कि तब वह अपने को बेहतर विकल्प के रूप में तैैैैयार कर पाती है कि नहीं।