दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की डायबिटीज और इन्सुलिन पर हंगामा मचा हुआ है। तिहाड़ प्रशासन उन्हें इन्सुलिन नहीं दे रहा है,उनकी डाइट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग ने इसे अमानवीय बताया है. उन्होंने कहा है कि कम से कम डायबिटीज के मरीजों और डॉक्टरों को इस मामले में सामने आना चाहिए अन्यथा ये मामला और ऐसे मामले जेलों में अत्याचार बढ़ाने के बहाने बनते जाएंगे!
सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की डायबिटीज और इन्सुलिन पर हंगामा मचा हुआ है। तिहाड़ प्रशासन उन्हें इन्सुलिन नहीं दे रहा है,उनकी डाइट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
केजरीवाल की पत्नी ने कहा है कि वो बारह साल से डायबिटिक हैं और अभी रोज पचास यूनिट इन्सुलिन ले रहे हैं।
मामला कोर्ट पहुंच गया है।
कोर्ट क्या फैसला देगा इससे अलग यह मामला चकित करने वाला है कि जेल में एक मरीज बता रहा है कि वो बारह साल से इन्सुलिन ले रहा है और जेल प्रशासन उसे इन्सुलिन नहीं दे रहा है!
क्या जेल मैनुअल किसी मरीज के बेहतर इलाज की जरूरत पर रोक लगाता है?क्या किसी कल्याणकारी राज में ऐसे विवाद की कल्पना भी की जा सकती है ? जी हां की जा सकती है!पार्किनसन्स जैसी बेहद कष्टदायक बीमारी से जूझ रहे 84 साल के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी को इसी लोकतांत्रिक देश की एक जेल और अदालत ने स्ट्रॉ और सिपर जैसी न्यूनतम जरूरत की चीज से वंचित रखा। स्टैन स्वामी की मौत जिस तरह हुई उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।
आजादी के 77 साल बाद जेल सुधारों की डुगडुगी के बीच ऐसे उदाहरण बेहद अमानवीय तस्वीर पेश करते हैं और इन आरोपों को आधार देते हैं कि जेलें राजनीतिक हिसाब चुकता करने के अड्डे बन गई हैं।
इन्सुलिन आधारित डायबिटीज के मरीज की जरूरतों को और इन्सुलिन से वंचित कर दिए जाने पर हो रही तकलीफ को समझना किसी और के लिए मुश्किल है।जब समय पर इन्सुलिन शरीर में पहुंच जाए तब जो राहत होती है उसके बारे में मुझ जैसे डायबिटीज के खराब प्रबंधन वाले मरीज से पूछिए।जब इन्सुलिन का कोई डोज मिस हो जाए तो भी जो महसूस होता है या शरीर को जो नुकसान होता है वो जानिए। मेरे लिए चौबीस घंटे बड़े भाई जैसे डायबेटोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं जिन्होंने यह सिखाया है कि डायबिटीज के मरीज को खुद भी अपनी बीमारी का प्रबंधन कैसे करना चाहिए।वो कहते हैं कि मरीज अपने शरीर का खुद मालिक होता है।
यह किसी बहस का विषय नहीं है कि केजरीवाल ने आम का एक टुकड़ा क्यों खा लिया ? चिकित्सा विज्ञान मरीज को संतुलित डाइट की सलाह देता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे डायबिटीज का मरीज नहीं खा सकता। बल्कि यह सलाह दी जाती है कि सीमित मात्रा में मरीज को नियमित फल खाने ही चाहिए।यह गुंजाइश भी है कि किसी एक चीज को हटा कर उसकी जगह लगभग उतनी कैलोरी की कोई दूसरी चीज मरीज खा सके।
दरअसल मिथ्या धारणाओं और बीमारी को लेकर अनर्गल दावों ने भी इस देश में डायबिटीज के मरीजों के उचित और वैज्ञानिक इलाज में बाधाएं खड़ी कर रखी हैं। इन दिनों साफ साफ सत्ता के साथ खड़े दिख रहे एक वरिष्ठ पत्रकार ने केजरीवाल के अंडे खाने की ऐसी हास्यास्पद व्याख्या की है कि तरस ही आने लगा।उन्हें अंडों को लेकर चिकित्सा विज्ञान की नई सिफारिशों का बोध ही नहीं है !
अभी बस ये देखना बाकी है कि किसी चैनल पर कोई एंकर एप्रन पहनकर ये समझा रहा है/रही है कि केजरीवाल को इन्सुलिन क्यों नहीं लेना चाहिए!
डायबिटीज में इन्सुलिन सबसे सुरक्षित और एडवांस्ड इलाज है।चिकित्सा विज्ञान के लगातार प्रयोगों से नई इन्सुलिन तथा जांच और उपचार के नए उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं।यह बहुत सामान्य जानकारी है कि बाजार में लंबे समय से 14 दिनों तक चौबीस घंटे शुगर की निगरानी के लिए डिवाइस है।
ये सब ऐसी सामान्य चीजें हैं जिनसे बिना किसी हंगामे के किसी मरीज की डायबिटीज की जांच से लेकर इलाज तक हो सकता है,लेकिन मरीज अगर अरविंद केजरीवाल हों तो हंगामा भी होगा और स्वाभाविक सवाल भी उठेंगे।खासतौर पर जब उनकी इन्सुलिन रोकी जाए तो शक भी होगा और बतौर मरीज,बतौर कैदी अरविंद केजरीवाल के मानवाधिकारों के सवाल भी उठेंगे ही।ये ऐसा दौर है जिसमें सबसे कम चर्चा जिसकी होती है वो मानवाधिकार हैं।
केजरीवाल के मामले में भाजपा से लेकर जेल प्रशासन और घुटना टेक मीडिया तक सिर्फ भ्रम खड़ा कर रहे हैं।
हाय केजरीवाल ने आम खा लिए! हाय केजरीवाल इन्सुलिन मांग रहा है!! हाय केजरीवाल आठ–आठ रोटियां और अंडे खा रहा है!!!यह सब सिर्फ सुनियोजित ही प्रतीत होता है।
इसी जेल में आम आदमी पार्टी के एक मंत्री की ऐश के भी वीडियो सामने आए थे।समझ में यही आता है कि खामोशी से आप किसी जेल में ऐश भी कर सकते हैं पर जिंदा रहने के लिए इंसुलिन या सिपर मांगेंगे तो हंगामा खड़ा होगा ! कोर्ट जाना होगा और कोर्ट में भी क्या फैसला आएगा पता नहीं।
इस देश में डॉक्टरों के बड़े संगठन हैं जिन्होंने व्यापारी बाबाओं और उनके चमत्कारी दावों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।रामदेव का ही उदाहरण ताजा है।क्या उन्हें भी ऐसे मामलों में राजनीतिक पक्षधरता से अलग, केवल किसी मरीज के प्रति सहानुभूति और अपने पेशे की जिम्मेदारियों के तहत स्टैंड नहीं लेना चाहिए ?
अरविंद केजरीवाल के गुनाह क्या हैं,उनमें कितनी राजनीति है,कितना विद्वेष है,कितनी साजिश है,इन सब में पड़े बिना इन्सुलिन जैसी जरूरी चीज के लिए भी इस देश में अगर किसी कैदी को तरसना पड़े तो यह अमानवीय और बेहद दुर्भाग्यजनक है।
मैं अट्ठाइस साल से इन्सुलिन ले रहा हूं और इस बात का हकदार हूं कि बतौर मरीज अरविंद केजरीवाल की मानवीय और चिकित्सकीय जरूरतों के हक में बोलूं।नहीं बोलूंगा तो डायबिटीज को लेकर अवैज्ञानिक और साजिशन फैलाई जा रही मिथ्या धारणाओं के पक्ष में ही खड़ा माना जाऊंगा।
कम से कम डायबिटीज के मरीजों और डॉक्टरों को इस मामले में सामने आना चाहिए अन्यथा ये मामला और ऐसे मामले जेलों में अत्याचार बढ़ाने के बहाने बनते जाएंगे!